ज़िन्दगी से लड़ रहे है हम,
कुछ तो मौत को भी मात दे गए,
लाखो की भीड़ में खोज रहे अपने को,
कुछ लाखो में अपना निशान छोड़ गए.
सोचते है कभी हम भी उन जैसे,
नीले अम्बर पर बादल बन छाए,
पर लड़ रहे है इस आसमा के नीचे,
कुछ रेशमी डोर से बंधे बंधन निभाए,
फिर तम्मानाये भी है पृथ्वी सम विशाल,
मन पर काबू पाना कोई खेल नहीं,
इसे समझाए या बहलाए, पर क्या,
बिना लगाम का घोड़ा कभी माने नहीं.
सोचते है इस दौड़ का हिस्सा बनकर,
यूँ ही ज़िन्दगी की दौड़ दौड़ते रहे,
कभी बीच सड़क आये मन में ये ख़याल,
दौड़ है ज़िन्दगी या हम ज़िन्दगी से रहे.
कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती,
बुजुर्गो हा यह ज्ञान साथ लिए,
अपने तत्वों को झकझोरते हुए,
इस कूट- नीती का हिस्सा बनकर जिए.
ज़िन्दगी बस यू ही चलनी है,
क्या खोया, क्या पाया किसका है गम,
ज़िन्दगी का हाथ थामे कुछ पल ही हुए,
अब तो कठिन इम्तिहान की और रुके न कदम.
No comments:
Post a Comment